सब्त के दिन वह एक आराधनालय में उपदेश कर रहा था। वहाँ एक स्त्री थी जिसे अठारह वर्ष से एक दुर्बल करनेवाली दुष्टात्मा लगी थी, और वह कुबड़ी हो गई थी और किसी रीति से सीधी नहीं हो सकती थी। यीशु ने उसे देखकर बुलाया और कहा, “हे नारी, तू अपनी दुर्बलता से छूट गई।” तब उसने उस पर हाथ रखे, और वह तुरन्त सीधी हो गई और परमेश्वर की बड़ाई करने लगी। इसलिये कि यीशु ने सब्त के दिन उसे अच्छा किया था, आराधनालय का सरदार रिसियाकर लोगों से कहने लगा, “छ: दिन हैं जिन में काम करना चाहिए, अत: उन ही दिनों में आकर चंगे हो, परन्तु सब्त के दिन में नहीं।” यह सुन कर प्रभु ने उत्तर दिया, “हे कपटियो, क्या सब्त के दिन तुम में से हर एक अपने बैल या गदहे को थान से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता? तो क्या उचित न था कि यह स्त्री जो अब्राहम की बेटी है जिसे शैतान ने अठारह वर्ष से बाँध रखा था, सब्त के दिन इस बन्धन से छुड़ाई जाती?” जब उसने ये बातें कहीं, तो उसके सब विरोधी लज्जित हो गए, और सारी भीड़ उन महिमा के कामों से जो वह करता था, आनन्दित हुई।
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