तू नालों में सोतों को बहाता है; वे पहाड़ों के बीच से बहते हैं, उन से मैदान के सब जीव–जन्तु जल पीते हैं; जंगली गदहे भी अपनी प्यास बुझा लेते हैं। उनके पास आकाश के पक्षी बसेरा करते, और डालियों के बीच में से बोलते हैं। तू अपनी अटारियों में से पहाड़ों को सींचता है तेरे कामों के फल से पृथ्वी तृप्त रहती है। तू पशुओं के लिये घास, और मनुष्यों के काम के लिये अन्न आदि उपजाता है, और इस रीति भूमि से वह भोजन–वस्तुएँ उत्पन्न करता है। और दाखमधु जिस से मनुष्य का मन आनन्दित होता है, और तेल जिस से उसका मुख चमकता है, और अन्न जिससे वह सम्भल जाता है। यहोवा के वृक्ष तृप्त रहते हैं, अर्थात् लबानोन के देवदार जो उसी के लगाए हुए हैं। उन में चिड़ियाँ अपने घोंसले बनाती हैं; लगलग का बसेरा सनौवर के वृक्षों में होता है। ऊँचे पहाड़ जंगली बकरों के लिये हैं; और चट्टानें शापानों के शरणस्थान हैं। उसने नियत समयों के लिये चंद्रमा को बनाया है; सूर्य अपने अस्त होने का समय जानता है। तू अन्धकार करता है, तब रात हो जाती है; जिस में वन के सब जीव–जन्तु घूमते फिरते हैं। जवान सिंह अहेर के लिये गरजते हैं, और ईश्वर से अपना आहार माँगते हैं। सूर्य उदय होते ही वे चले जाते हैं और अपनी माँदों में जा बैठते हैं। तब मनुष्य अपने काम के लिये और सन्ध्या तक परिश्रम करने के लिये निकलता है।
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