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सभोपदेशक 10:1-14

सभोपदेशक 10:1-14 HINOVBSI

मरी हुई मक्खियों के कारण गन्धी का तेल सड़ने और बसाने लगता है; और थोड़ी सी मूर्खता बुद्धि और प्रतिष्‍ठा को घटा देती है। बुद्धिमान का मन उचित बात की ओर रहता है परन्तु मूर्ख का मन उसके विपरीत रहता है। वरन् जब मूर्ख मार्ग पर चलता है, तब उसकी समझ काम नहीं देती, और वह सबसे कहता है, ‘मैं मूर्ख हूँ।’ यदि हाकिम का क्रोध तुझ पर भड़के, तो अपना स्थान न छोड़ना, क्योंकि धीरज धरने से बड़े बड़े अपराध रुकते हैं। एक बुराई है जो मैं ने सूर्य के नीचे देखी, वह हाकिम की भूल से होती है : अर्थात् मूर्ख बड़ी प्रतिष्‍ठा के स्थानों में ठहराए जाते हैं, और धनवान लोग नीचे बैठते हैं। मैं ने दासों को घोड़ों पर चढ़े, और रईसों को दासों के समान भूमि पर चलते हुए देखा है। जो गड़हा खोदे वह उसमें गिरेगा और जो बाड़ा तोड़े उसको सर्प डसेगा। जो पत्थर फोड़े, वह उनसे घायल होगा, और जो लकड़ी काटे, उसे उसी से डर होगा। यदि कुल्हाड़ा थोथा हो और मनुष्य उसकी धार को पैनी न करे, तो अधिक बल लगाना पड़ेगा; परन्तु सफल होने के लिये बुद्धि से लाभ होता है। यदि मंत्र से पहले सर्प डसे, तो मंत्र पढ़नेवाले को कुछ भी लाभ नहीं। बुद्धिमान के वचनों के कारण अनुग्रह होता है, परन्तु मूर्ख अपने वचनों के द्वारा नष्‍ट होते हैं। उसकी बात का आरम्भ मूर्खता का, और उनका अन्त दु:खदाई बावलापन होता है। मूर्ख बहुत बातें बढ़ा कर बोलता है, तौभी कोई मनुष्य नहीं जानता कि क्या होगा, और कौन बता सकता है कि उसके बाद क्या होनेवाला है?

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