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भजन संहिता 121:1-2

भजन संहिता 121:1-2 HINCLBSI

मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर उठाता हूं। क्‍या मुझे वहां से सहायता प्राप्‍त होती है? मुझे प्रभु से सहायता प्राप्‍त होती है, जो आकाश और पृथ्‍वी का सृजक है।

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भजन संहिता 121:1-2 - मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर
उठाता हूं।
क्‍या मुझे वहां से सहायता प्राप्‍त होती है?
मुझे प्रभु से सहायता प्राप्‍त होती है,
जो आकाश और पृथ्‍वी का सृजक है।भजन संहिता 121:1-2 - मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर
उठाता हूं।
क्‍या मुझे वहां से सहायता प्राप्‍त होती है?
मुझे प्रभु से सहायता प्राप्‍त होती है,
जो आकाश और पृथ्‍वी का सृजक है।भजन संहिता 121:1-2 - मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर
उठाता हूं।
क्‍या मुझे वहां से सहायता प्राप्‍त होती है?
मुझे प्रभु से सहायता प्राप्‍त होती है,
जो आकाश और पृथ्‍वी का सृजक है।भजन संहिता 121:1-2 - मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर
उठाता हूं।
क्‍या मुझे वहां से सहायता प्राप्‍त होती है?
मुझे प्रभु से सहायता प्राप्‍त होती है,
जो आकाश और पृथ्‍वी का सृजक है।भजन संहिता 121:1-2 - मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर
उठाता हूं।
क्‍या मुझे वहां से सहायता प्राप्‍त होती है?
मुझे प्रभु से सहायता प्राप्‍त होती है,
जो आकाश और पृथ्‍वी का सृजक है।

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