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भजन संहिता 38

38
पीड़ित मनुष्य की प्रार्थना
यादगार के लिये दाऊद का भजन
1हे यहोवा, क्रोध में आकर मुझे
झिड़क न दे,
और न जलजलाहट में आकर मेरी ताड़ना कर!
2क्योंकि तेरे तीर मुझ में लगे हैं,
और मैं तेरे हाथ के नीचे दबा हूँ।
3तेरे क्रोध के कारण मेरे शरीर में कुछ भी
आरोग्यता नहीं;
और मेरे पाप के कारण मेरी हड्डियों में कुछ
भी चैन नहीं।
4क्योंकि मेरे अधर्म के कामों में मेरा सिर
डूब गया,
और वे भारी बोझ के समान मेरे सहने से
बाहर हो गए हैं।
5मेरी मूढ़ता के कारण
कोड़े से लगे मेरे घाव बसाते हैं और
सड़ गए हैं।
6मैं बहुत दु:खी हूँ और झुक गया हूँ;
दिन भर मैं शोक का पहिरावा पहिने हुए
चलता फिरता हूँ।
7क्योंकि मेरी कमर में जलन है,
और मेरे शरीर में आरोग्यता नहीं।
8मैं निर्बल और बहुत ही चूर हो गया हूँ;
मैं अपने मन की घबराहट से कराहता हूँ।
9हे प्रभु, मेरी सारी अभिलाषा तेरे सम्मुख है,
और मेरा कराहना तुझ से छिपा नहीं।
10मेरा हृदय धड़कता है, मेरा बल घटता
जाता है;
और मेरी आँखों की ज्योति भी मुझ से
जाती रही।
11मेरे मित्र और मेरे संगी मेरी विपत्ति में
अलग हो गए,
और मेरे कुटुम्बी भी दूर जा खड़े हुए।
12मेरे प्राण के ग्राहक मेरे लिये जाल
बिछाते हैं,
और मेरी हानि का यत्न करनेवाले दुष्‍टता
की बातें बोलते,
और दिन भर छल की युक्‍ति सोचते हैं।
13परन्तु मैं बहरे के समान सुनता ही नहीं,
और मैं गूँगे के समान मुँह नहीं खोलता।
14वरन् मैं ऐसे मनुष्य के तुल्य हूँ जो कुछ
नहीं सुनता,
और जिसके मुँह से विवाद की कोई बात
नहीं निकलती।
15परन्तु हे यहोवा, मैं ने तुझ ही पर अपनी
आशा लगाई है;
हे प्रभु, मेरे परमेश्‍वर, तू ही उत्तर देगा।
16क्योंकि मैं ने कहा, “ऐसा न हो कि वे मुझ
पर आनन्द करें;
जब मेरा पाँव फिसल जाता है, तब वे मुझ पर
अपनी बड़ाई मारते हैं।”
17क्योंकि मैं तो अब गिरने ही पर हूँ;
और मेरा शोक निरन्तर मेरे सामने है।
18इसलिये कि मैं तो अपने अधर्म को
प्रगट करूँगा,
और अपने पाप के कारण खेदित रहूँगा।
19परन्तु मेरे शत्रु फुर्तीले और सामर्थी हैं,
और मेरे बैरी बहुत हो गए हैं।
20जो भलाई के बदले में बुराई करते हैं,
वे भी भलाई के पीछे चलने के कारण
मेरा विरोध करते हैं।
21हे यहोवा, मुझे छोड़ न दे!
हे मेरे परमेश्‍वर, मुझ से दूर न हो!
22हे यहोवा, हे मेरे उद्धारकर्ता,
मेरी सहायता के लिये फुर्ती कर!

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